किन्नू एक संतरे के किस्म का एक फल है । किन्नू एक उच्च उपज वाली मंदारिन संकर है जिसकी खेती भारत और पाकिस्तान के व्यापक पंजाब क्षेत्र में बड़े पैमाने पर की जाती है। यह स्वाद में खट्टा कम और मीठा ज्यादा होता है । यह विटामिन-सी और नैच्रल शर्करा से भरपूर होता है । इस पोस्ट में हम किन्नू के फायदे, खेती और जानकारी हासिल करेंगे ।
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किन्नू फल की जानकारी
किन्नू को सबसे पहले फ्लोरिडा के पलाटका में उगाया गया था । 1800 के दशक में किन्नू को “टैन्जरीन” नाम मिला क्योंकि इसे मोरक्को के टंगेर शहर से आयात किया गया था। संतरे की तरह, किन्नू साइट्रस (Citrus) फल परिवार का सदस्य हैं, लेकिन वह सी-टेंजेरिना प्रजाति का फल हैं।
खाने और जूस बनाकर पीने मे किन्नू का फल लाजवाब होता है । संतरे के गुण और एक्स्ट्रा मिठास होने के वजह से इसे छोटे से लेकर बड़े सभी बहुत पसंद करते है । आज इस पोस्ट मे हम किन्नू के बारे मे जानकारी हासिल करेंगे ,
किन्नू को विशेष रूप से अमेरिका में मैंडरिन (Mandarine) के नाम से जाना जाता है। वानस्पतिक दृष्टिकोण से, किन्नू मंदारिन के एक उपसमूह को संदर्भित करता है। आम तौर पर, मैंडरिन जो लाल-नारंगी और चमकीले रंग के होते हैं, उन्हें किन्नू के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर अक्टूबर के अंत से जनवरी तक कीनू का उत्पादन और खपत अपने चरम पर होती है।
संतरे की तरह, किन्नू नारंगी रंग के होते हैं । किन्नू की कुछ किस्मों में हरे या लाल रंग के फल हो सकते हैं। आम तौर पर किन्नू संतरे से थोड़े छोटे और कम गोल होते हैं और हाथ से छीलने में आसान होते हैं।
किन्नू मे प्रचुर मात्रा मे शर्करा होती है, इस वजह से इनका स्वाद मीठा होता है। संतरे की तरह किन्नू के कुछ पैदावार मे बीज हो भी सकते है या फिर नहीं भी । किन्नू का मांस और छिलका दोनों ही अत्यधिक पौष्टिक होते हैं। आप चलते-फिरते नाश्ते के रूप में किन्नू का आनंद ले सकते हैं। इन्हे ताजा ज्यूस और जाम बनाने मे इस्तेमाल किया जा सकता है ।
किन्नू की खेती | Kinnu Ki Kheti
किन्नू पंजाब राज्य का मुख्य फल है । किन्नू की खेती (kinnu ki kheti) पूरे उत्तरी भारत में की जाती है। भारत में केले और आम के बाद यह तीसरे स्थान पर बड़े फल मे शामिल है। पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर आदि किन्नू खेती करने वाले मुख्य राज्य है। भारत मे इन्हे गर्मियों के दिनों मे खाना पसंद किया जाता है ।
किन्नू का पौधा सितंबर-अकतूबर मे बीजाई के बाद बना सकते है । एक महीने अंदर किन्नू का पौधा उग आता है । इसे नर्सरी मे बड़े सावधानी के साथ मिट्टी के दाँड़ पर लगाया जाता है । हवा, धूप और किट जानवर से इसकी हिफाजत करना पड़ती है । पौधा मच महीनों का होनेपर उसे काही और लेजा कर प्लांट कर सकते है ।
किन्नू का पेड़ 15 से 35 साल जीता है । इस दौरान यह की क्विंटल फल देता है । एक साल मे एक फल 50 किलो के आस पास फल देता है । अलग अलग प्रजाति के पेड़ अलग अलग महीने मे पकते है । जैसे PAU किन्नू-1 का पेड़ जनवरी महीने मे फल देता है । कम से कम 208 किन्नू के पेड़ एक एकर मे लगते है ।
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किन्नू और संतरे में क्या अंतर है ?
किन्नू और संतरे में निम्न तरह का अंतर होता है,
- किन्नू एक साइट्रस फलों मे मैंडरिन नाम के उपसमूह से है, जबकि संतरे पोमेलो और मैंडरिन फलों का एक संकर (हाइब्रिड) है। संतरे की उत्पत्ति एशिया में हुई, जबकि कीनू की उत्पत्ति फ्लोरिडा में हुई।
- किन्नू से संतरे तुलना में बड़े और अधिक गोल होते हैं। वे दोनों बीज रहित हो सकते हैं या उनमें बीज हो सकते हैं। अधिकांश नारंगी किस्में पीले-संतरे की होती हैं, जबकि किन्नू अधिक लाल-नारंगी होते हैं।
- संतरे की तुलना में किन्नू आमतौर पर मीठा और हल्के स्वाद का अंतर होता है।
- किन्नू और संतरे दोनों की त्वचा पतली होती है। हालांकि, संतरे की तुलना में किन्नू को छीलना आम तौर पर बहुत आसान होता है।
किन्नू के क्या फायदे है ?
- संतरे और अंगूर जैसे अन्य खट्टे फलों की तुलना में उनके छोटे आकार के बावजूद, कीनू मे भरपूर पोषक तत्व है। आपको री-हाइड्रैट करने के लिए उनमे लगभग 85% पानी होता हैं।
- यह पानी से भरपूर होता हैं जो विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। वे पोटेशियम और बी कॉम्प्लेक्स विटामिन जैसे अन्य विटामिन और खनिजों के भी अच्छे स्रोत हैं।
- किन्नू और उनके छिलके विटामिन सी और फ्लेवोनोइड जैसे एंटीऑक्सिडेंट के समृद्ध स्रोत हैं, जो कई बीमारियों से बचाते हैं।
- किन्नू खाने से आपकी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को लाभ हो सकता है क्योंकि उनमें बहुत सारा विटामिन सी होता है। यह विटामिन आपके शरीर की वायरस और बैक्टीरिया से बचाव करने की क्षमता को मजबूत करता है।
- इसमे में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट, जैसे कि विटामिन सी और नोबिलेटिन, मस्तिष्क की कोशिकाओं को सिज़ोफ्रेनिया, अल्जाइमर रोग और पार्किंसंस रोग से जुड़े नुकसान से बचा सकते हैं। हालांकि, मनुष्यों में इसे पुख्ता तौरपर जानने के लिए अभी और शोध की जरूरत है।